‘स्वयंभू शिवलिंग’ के दर्शन, जिसे साथ रखती थीं देवीअहिल्या

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उस शिवलिंग की कहानी जिसे परम शिवभक्त देवी अहिल्याबाई पूरे समय अपने हाथ में रखती थीं। कम ही लोग जानते हैं कि 3 इंच ऊंचे और 200 ग्राम वजनी स्वयंभू कहा गया यह शिवलिंग आज भी इंदौर के मल्हारी मार्तंड मंदिर में रखा हुआ है। बालू रेत के ठोस कणों का बना हुआ है और बिखरने से बचाने के लिए इस पर सोने का कवच चढ़ाया गया है। इतना ही नहीं, यहां 12 ज्योर्तिलिंगों से लाए 12 शिवलिंग भी स्थापित हैं

इंदौर के राजबाड़ा पर मल्हार मार्तंड मंदिर करीब 300 साल पुराना है। इसका निर्माण देवी अहिल्याबाई के ससुर और होलकर राजघराने के पहले महाराजा मल्हार राव ने कराया था। यहां भगवान गणेशजी, कुलदेवता खंडोबा, लड्‌डू गोपाल, राधाकृष्ण के साथ मल्हारी मार्तंड की प्रतिमाएं स्थापित की गईं।

शिवजी की परम भक्त देवी अहिल्याबाई ने जब इंदौर का राजपाट संभाला तो कई धार्मिक यात्राएं शुरू कर दीं। इस दौरान वे सभी 12 ज्योर्तिलिंगों के दर्शन के लिए गईं तो हर जगह से एक शिवलिंग की पिंडी लाईं और उन्हें ज्योतिर्लिंग के प्रतीक स्वरूप इस मंदिर में विराजित करती गईं।

इसी दौरान उन्हें नर्मदाजी से एक शिवलिंग मिल गए, जिनका आकार बहुत छोटा था, लेकिन उसे वह शिवलिंग बहुत प्रिय था। महज 3 इंच ऊंचे और 200 ग्राम के इस शिवलिंग को वे हमेशा अपने हाथ में रखने लगीं।

लगातार हाथ में रखने से इस शिवलिंग के क्षरण का डर था, क्योंकि यह बालू रेत से बना हुआ था। इस कारण से देवी अहिल्याबाई ने इस शिवलिंग को स्वर्ण कवच चढ़वाया ताकि बालू के कण ना बिखरें।

स्वर्ण कवच जड़ित शिवलिंग अब मल्हारी मार्तंड मंदिर में स्थापित है, जिसके दर्शन सामान्य दिनाें में कोई भी जाकर कर सकता है। इस शिवलिंग को ‘स्वयंभू शिवलिंग’ के नाम से पुकारा जाता है।

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