कुबेरेश्वर धाम से क्या है रुद्राक्ष का कनेक्शन?
इस शिवरात्रि चमत्कारिक रुद्राक्ष की चर्चा पूरे देश में है। मध्यप्रदेश के सीहोर स्थित कुबेरेश्वर धाम में तो पूरे देश के लोग रुद्राक्ष लेने पहुंच रहे हैं। दावा है कि इस रुद्राक्ष में औषधीय तत्व है, ये भी दावा किया जा रहा है कि इस रुद्राक्ष से हर समस्या का निवारण हो जाएगा। पंडित प्रदीप मिश्रा ने अपनी कथाओं में कुबेरेश्वर धाम के रुद्राक्ष का जो महिमा मंडन किया है, उसके बाद लोगों में भूखे-प्यासे पैदल चलकर रातभर कतारों में खड़े होकर रुद्राक्ष को हासिल करने की होड़ मची है।
कुबेरेश्वर धाम में जो रुद्राक्ष दिया जाता है, वो गंडकी नदी के तट पर लगे वृक्षों का है। उनका तर्क है कि साइंस भी ये मानता है कि उनके द्वारा दिए जाने वाले रुद्राक्ष में औषधीय तत्व हैं। कई असाध्य बीमारी में इस रुद्राक्ष से लोगों को चमत्कारिक फायदा हुआ है। यही वजह है कि लाखों लोग रुद्राक्ष लेने के लिए यहां पहुंच रहे हैं।
इस दावे पर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के पूर्व अध्यक्ष आचार्य अशोक द्विवेदी कहते हैं- गंडकी के रुद्राक्ष खास होने की बात सरासर असत्य है। हरिद्वार से लेकर नेपाल और जावा से सुमात्रा तक का रुद्राक्ष समान है। कुबेरेश्वर धाम में रुद्राक्ष एक धार्मिक व्यापार का रूप ले रहा है। उन्होंने कहा कि किसी को रुद्राक्ष देंगे तो पहले उसे धारण करने के लिए आह्वान होता है। भंडारे की तरह बांटा नहीं जाता।
आचार्य द्विवेदी कहते हैं- श्रद्धालु जनता को रुद्राक्ष पर भरोसा है, लेकिन इसे प्राप्त करने और धारण करने का ज्ञान नहीं है। गुरु अपने शिष्य को देता है। इसकी विधि भी है। कुबेरेश्वर धाम में वो विधि कहीं दिखाई नहीं दी। यजुर्वेद के ग्यारहवें अध्याय में इसका उल्लेख है। मंत्र से हम रुद्राक्ष धारण कराते हैं। यदि रुद्राक्ष ऐसे ही देना शुरू करेंगे तो उसका कोई पुण्य नहीं है।
रुद्राक्ष को प्राप्त करने की भी एक विधि है। पहले रुद्राक्ष के वृक्ष के पास आह्वान होता है कि मैं इस विशेष नक्षत्र में आपको प्राप्त करना चाहता हूं, ताकि मेरा दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल सके। इसके बाद वो प्राप्त किया जाता है।
आचार्य द्विवेदी बताते हैं अक्ष यानी आंसू और रुद्र यानी जो पापों से, दु:ख से दूर करे, वो हमें लौकिक और पारलौकिक शांति देता है। रुद्राक्ष धारण करना शरीर को हमेशा पवित्र रखने जैसा है।